शनिवार, 17 मई 2014


२२ २२ २२ २२

 

क्या तुमने ये सोचा पगली

गर मैं तेरा होता पगली

 

तेरी यादें फूलों जैसी

कांटे होते  रोता पगली

 

इन आँखों के वादे पढ़कर

बन बैठा मैं झूठा पगली

 

मैं तो तेरा साया हूँ ,अब

तू है मेरी काया पगली

 

तेरी बातें तू ही जाने

मैं तो हूँ बस तेरा पगली

 

 

राहों पर यूँ नज़र बिछाना

गुमनाम करे दीवाना पगली

 

 
ग़ज़ल ,,,,,,,,,,,,,, गुमनाम पिथौरागढ़ी

सोमवार, 21 अप्रैल 2014


आपसे जब दोस्ती होने लगी

हाँ गमो में अब कमी होने लगी

 

 

रोज की ये दौड़ रोटी के लिए

भूख के घर खलबली होने लगी

 

आप मेरे हम सफ़र जब से हुए

ज़िन्दगी मेरी भली होने होने लगी

 

 

रख दिए कागज़ में सारे ज़ख्म जब

सूख के वो शायरी होने लगी

 

 

शहर भर में ज़िक्र है इस बात का

पीर की चादर बड़ी होने लगी

 

 

फूल तितली चिड़िया बेटी के बिना

कैसे ये दुनिया भली होने लगी

 

 

सर्द दुपहर उम्र की है साथ में

याद स्वेटर ऊनी सी होने लगी

 



 

ज़ख्म अब कहने लगे 'गुमनाम' जी

आपसे अब दोस्ती होने लगी